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'छत्रपति शिवाजी महाराज द ग्रेटेस्ट'

  छत्रपति शिवाजी महाराज अप्रतिम थे। उनका पराक्रम, कूटनीति, दूरदृष्टि, साहस व प्रजा के प्रति स्नेहभाव अद्वितीय है। सैन्य-प्रबंधन, रक्षा नीति, अर्थशास्त्र, विदेश नीति, वित्त, प्रबंधन सभी क्षेत्रों में उनकी अपूर्व दूरदृष्टि थी, जिस कारण वे अपने समकालीन शासकों से सदैव आगे रहे। राष्ट्रप्रेम से अनुप्राणित उनका जीवन सबके लिए प्रेरणा का स्रोत है और अनुकरणीय भी ।         छत्रपति शिवाजी महाराज ने 'हिंदवी स्वराज' की अवधारणा दी। अपनी अतुलनीय निर्णय क्षमता और सूझबूझ व अविजित पराक्रम के बल पर मुगल आक्रांताओं के घमंड को चूर-चूर कर दिया; अपनी लोकोपयोगी नीतियों से जनकल्याण किया। शिवाजी महाराज की तुलना सिकंदर, सीजर, हनीबॉल, अटीला आदि शासकों से की जाती है। यह पुस्तक उस अपराजेय योद्धा, कुशल संगठक, नीति-निर्धारक व योजनाकार की गौरवगाथा है, आशा है यह पुस्तक आपको उनके गुणों को ग्राह्य करने के लिए प्रेरित करेगी। 👇🏻 'छत्रपति शिवाजी महाराज द ग्रेटेस्ट' 

छत्रपति शिवाजी महाराज संसार के तथाकथित महान योद्धाओं से अधिक महान क्यों थे?

 छत्रपति शिवाजी महाराज संसार के तथाकथित महान योद्धाओं से अधिक महान क्यों थे?  किसी भी दो ऐतिहासिक व्यक्तियों की तुलना करना संभव नहीं है और उचित भी नहीं है, किंतु इसका एक लाभ यह है कि ऐसी तुलना जिसके साथ की जा रही है, वह अपनी पूर्ण विशेषताओं के साथ हमारे दिल में जगह बनाता है। शिवाजी महाराज के जीवन में ऐसी-ऐसी घटनाएं घटी है कि सुनकर सारा संसार हिल जाए! उन घटनाओं के आधार पर हम उन्हें 'एकमेवाद्वितीयं' घोषित करके स्वयं गौरवान्वित हो सकते हैं। शिवाजी महाराज की अपेक्षा अधिक पराक्रम करने वाले या अधिक प्रदेश जीतकर उस पर राज करने वाले पुरुष इतिहास में बहुत होंगे, किंतु शिवाजी जैसे गुणों का एकत्रीकरण किसी भी व्यक्ति में दिखाई नहीं देता। यदि हम शिवाजी महाराज के अवगुणों की खोज करें या किसी ने अगर चुनौती दी कि शिवाजी के दोष दिखा दो, तो हमें निराश ही नहीं, निरुत्तर भी होना पड़ेगा। एक दोष ढूंढने पर भी शिवाजी में दिखाई नही देता। अनेक घटनाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि शिवाजी महाराज महान समझे जाने वाले अन्य योद्धाओं की तुलना में अधिक महान थे। हम आठ विदेशी एवं दो भारतीय राजकर्ताओं के जीवन की संक

📚 पायथेगोरसचा संक्षिप्त इतिहास 📚 ✍

पायथेगोरस कोठे व कधी जन्मला 🙊याची माहिती उपलब्ध नाही. त्याचा जन्म (ख्रि. पू. ५८० ते ५६८) चे दरम्यान झाला असावा. इ. स. २०० चे सुमारास प्लिनी होऊन गेला. तो लिहितो की पायथेगोरस अभ्यासासाठी बॅबिलोनिआत गेला होता. काही लोकांचे म्हणणे असे आहे की तो भारतात येऊन गेला. ज्या प्रमेयाबरोबर त्याचे नाव जोडलेले आहे, त्या भूमितीतील प्रमेयाची माहिती चीन, इजिप्त व भारत या देशांतील त्या वेळच्या लोकांना होती. त्याने कदाचित काटकोन त्रिकोणातील कर्णाच्या वर्गाबद्दलचे प्रमेय सिद्ध केले असेल. तो ख्रि. पू. ५०० मध्ये मरण पावला. पायथंगोरसचे ग्रंथ पायथंगोरसचे गणितावरील कोणतेही ग्रंथ आज 👎 उपलब्ध नाहीत. त्याचे संबंधाने काहीच माहिती मिळत नाही. इजिप्तमधील भूमितीप्रमाणे त्याने क्षेत्रफळाचाच विचार ज्यास्त केलेला दिसतो. या प्रमेयाची मूळ कल्पना त्याला इजिप्तमधून मिळाली असावी व हे प्रमेय त्याने कोणत्या रीतोने सिद्ध केले असावे, हे चर्चेचे विषय झाले आहेत. विशेष महत्त्वाची गोष्ट म्हणजे त्याने अगर त्याच्या अनुयायांनी वर्तुळावर आधारित एकही महत्त्वाचा सिद्धान्त प्रस्थापित केला नाही. पायथेगोरसच्या अनुयायांनी, स्वतः लावलेले शोध स

📚 वेद 📚

वेदों का काल वेदों का अवतरण काल वर्तमान सृष्टि के आरंभ के समय का माना जाता है। इसके हिसाब से वेद को अवतरित हुए 2017 (चैत्र शुक्ल प्रतिपदा विक्रमी संवत 2074) को 1,96,08,53,117 वर्ष होंगे। वेद अवतरण के पश्चात् श्रुति के रूप में रहे और काफी बाद में वेदों को लिपिबद्ध किया गया और वेदों को संरक्षित करने अथवा अच्छी तरह से समझने के लिये वेदों से ही वेदांगों का आविष्कार किया गया। इसमें उपस्थित खगोलीय विवरणानुसार कई इतिहासकार इसे ५००० से ७००० साल पुराना मानते हैं, परंतु आत्मचिंतन से ज्ञात होता है, कि जैसे सात दिन बीत जाने पर पुनः रविवार आता है, वैसे ही ये खगोलीय घटनाएं बार बार होतीं हैं अतः इनके आधार पर गणना श्रेयसकर नहीं। वैदिक विवाद यद्यपि आज के युग में हम सम्पूर्ण संसार में एकता-एकात्मता, प्रेम की भावना बना रहे हैं तथापि उस कालखण्ड में जब ब्रिटेन भारत पर शासन करता था, कुछ आङ्ग्ल अनुवादकों के द्वारा वेदों के अनुवाद से कई मिथक उत्पन्न हो गए। यह कोई दोष नहीं बल्कि सोंची समझी साजिश थी। उनका मुख्य कार्य भारत को खोखला करना और हिन्दुओं को ईसाई बनाना था। उन आंग्ल अनुवादकों का कहना था, "आर्य विदे

📚 वेदों की प्राचीनता (२/२)

  वेदों में ऐतिहासिक वर्णन वेदों में ऐसे शब्दों को देखकर जो पुराणों में ऐतिहासिक पुरुषों, नदियों और नगरों के लिए व्यवहृत हुए हैं, प्रायः विद्वान् कहते हैं, कि वेदों में इतिहास है और उस इतिहास का क्रम पुराणों में दी हुई वंशावलियों के साथ बैठ जाता है। वे कहते हैं, कि वेद में आये हुए ऐतिहासिक राजाओं की पौराणिक वंशावली में देखकर और २०-२५ वर्ष की पीढ़ी मानकर वेद का काल निश्चित किया जा सकता है। जो ज्योतिष के द्वारा निकाले गये समय के साथ मिल जाता है। सुदास रामचन्द्र से ११ पीढ़ी पहले हुए थे, अत: इन दोनों का अन्तर प्राय: ३०० वर्ष का था, अत: यह समय २४५० विक्रम पूर्व का पड़ता है। सुदास के पश्चात् किसी सूर्यवंशी राजा का वर्णन वेदों में नहीं है। उधर स्वयं चाक्षुष मनु, वैवस्वत मनु और ययाति वैदिक ऋषियों में थे वैवस्वतमनु का समय ऊपर ३८०० विक्रमपूर्व लिखा जा चुका है। चाक्षुष मन्वन्तर के ठीक पहले का होने से ४००० विक्रम पूर्व का माना जा सकता है, अत: पौराणिक कथनों का वैदिक वर्णनों से मिलान करने पर प्रकट होता है, कि २५०० से ४००० विक्रम पूर्व तक के कथन वेदों में हैं। कई महाशयों ने ज्योतिष के आधार पर वेदों क

📚 वेदों की प्राचीनता - (१/२)

वेदों की प्राचीनता यूरोप के विचारवान् वर्त्तमान भौतिक उन्नति से सन्तुष्ट नहीं है, प्रत्युत मनुष्य की स्वाभाविक स्थिति की खोज में है। उन्होंने यह बात निश्चित कर ली है कि मनुष्य अपनी उत्पत्ति के समय स्वाभाविक स्थिति में था और सुखी था, परन्तु वह स्वाभाविक स्थिति कैसी थी, ज्ञानयुक्त थी या ज्ञानहीन, इसका कोई प्रमाण नहीं मिलता। केवल अनुमान के सहारे कहा जाता है कि वह स्वाभाविक दशा थी, प्राकृतिक स्थिति थी और सबका व्यवहार प्रकृति के अनुसार था, परन्तु विचार करने से ज्ञात होता है कि प्रकृति का मनुष्य के साथ वह सम्बन्ध नहीं है जो पशुओं के साथ है, इसलिए उसकी स्थिति सर्वथा ही प्रकृति के सहारे नहीं रह सकती। इसका कारण यही है कि मनुष्य पशु नहीं, किन्तु ज्ञानवान् जीव है, अत: उसे प्रकृति के बाह्यांश से कोई प्रेरणा नहीं मिल सकती। उसे तो प्रकृति के आन्तरिक और बौद्धिक अंश से ही ज्ञान का स्पष्ट उपदेश होता है तभी वह बुद्धिपूर्वक अपनी स्थिति बना सकता है और सुखी रह सकता है, इसीलिए आर्यों का विश्वास है कि आदिसृष्टि के समय, अर्थात् सृष्ट्युत्पत्ति के साथ ही मनुष्य को परमात्मा की ओर से ज्ञान की प्रेरणा हुई। वही ज्

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