किमती फूलदान
विजयनगर का वार्षिक उत्सव बहुत ही धूमधाम से बनाया जाता था। जिसमें आसपास के राज्यों के राजा भी महाराज के लिए कीमती उपहार लेकर सम्मिलित होते थे। हर बार की तरह इस बार भी महाराज को बहुत से उपहार मिले। सारे उपहार में महाराज को रत्नजड़ित रंग – बिरंगे चार फूलदान बहुत ही पसंद आए। महाराज ने उन फूलदानों को अपने विशेष कक्ष में रखवाया और उन फूलदानों की रखवाली के लिए एक सेवक भी रख लिया। सेवक रमैया बहुत ही ध्यान से उन फूलदानों की रखवाली करता था, क्योंकि उसे ये काम सौंपने से पहले ही बता दिया गया था कि, अगर उन फूलदानों को कोई भी नुकसान पहुंचा तो उसे अपनी जान से हाथ धोना पड़ेगा।
एक दिन रमैया बहुत ही सावधानी से उन फूलदानों की सफाई कर रहा था कि, अचानक उसके हाथ से एक फूलदान छूटकर ज़मीन पर गिरकर चकनाचूर हो गया। जैसे ही महाराज को ये बात पता चली तो उन्होंने चार दिन बाद रमैया को फांसी देना का आदेश सुना डाला। महाराज का ये आदेश सुनते ही तेनालीराम महाराज के पास आया और बोला, “महाराज एक फूलदान के टूट जाने पर आप अपने इतने पुराने सेवक को मृत्युदंड कैसे दे सकते हैं? ये तो सरासर अन्याय है।”
परन्तु महाराज उस समय बहुत ही गुस्से में थे, इसलिए उन्होंने तेनालीराम की बात पर विचार करना ज़रूरी नहीं समझा। जब महाराज नहीं समझे तो तेनालीराम रमैया के पास गया और उससे बोला, “तुम चिंता मत करो। अब मैं जो कहूँ तुम उसे ध्यान से सुनना और फांसी से पहले तुम वैसा ही करना। मैं विश्वास दिलाता हूँ कि, तुम्हें कुछ नहीं होगा।” रमैया ने तेनालीराम की सारी बात बड़े ही ध्यान से सुनी और बोला, “मैं ऐसा ही करूँगा।” फांसी का दिन आ गया। फांसी के समय महाराज भी वहाँ उपस्थित थे। फांसी देने से पहले रमैया से उसकी अंतिम इच्छा पूछी गई। तब रमैया बोला, ”मैं एक बार बचे हुए तीन फूलदानों को एक बार देखना चाहता हूँ जनके कारण से मुझे फांसी पर लटकाया जा रहा है।” रमैया की अंतिम इच्छा के अनुसार महाराज ने उन तीन फूलदानों को लाने का आदेश दिया।
अब जैसे ही फूलदान रमैया के सामने आए तो उसने तेनालीराम के कहे अनुसार तीनों फूलदानों को ज़मीन पर गिराकर तोड़ दिया। रमैया के फूलदान तोड़ते ही महाराज गुस्से से आग-बबूला हो गए और चिल्लाकर बोले, “ये तुमने क्या किया आखिर तुमने इन्हें क्यों तोड़ डाला।” रमैया बोला, “महाराज! आज एक फूलदान टूटा है, तो मुझे फांसी दी जा रही है। ऐसे ही जब ये तीनों भी टूटेंगे तो तीन और लोगों को मृत्युदंड दिया जाएगा। मैंने इन्हें तोडकर तीन लोगों की जान बचा ली है, क्योंकि फूलदान इंसानों की जान से ज्यादा कीमती कुछ नहीं हो सकता।”
रमैया की बात सुनकर महाराज का गुस्सा शांत हो गया और उन्होंने रमैया को भी छोड़ दिया। फिर उन्होंने रमैया से पूछा, “तुमने ये सब किसके कहने पर किया था।” रमैया ने सब सच-सच बता दिया। तब महाराज ने तेनालीराम को अपने पास बुलाया और बोले, “आज तुमने एक निर्दोष की जान बचा ली और हमें भी यह बतला दिया कि, गुस्से में लिए गए निर्णय हमेशा गलत होते हैं। तेनालीराम तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद।”
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें