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अंगूठी चोर


अंगूठी चोर

तेनालीराम की 3 चतुराई भरी कहानियाँ ...

महाराजा कृष्ण देव राय एक कीमती रत्न जड़ित अंगूठी पहना करते थे। जब भी वह दरबार में उपस्थित होते तो अक्सर उनकी नज़र अपनी सुंदर अंगूठी पर जाकर टिक जाती थी। राजमहल में आने वाले मेहमानों और मंत्रीगणों से भी वह बार-बार अपनी उस अंगूठी का उल्लेख किया करते थे।
एक बार राजा कृष्ण देव राय उदास हो कर अपने सिंहासन पर बैठे थे। तभी तेनालीराम वहाँ आ पहुंचे। उन्होने राजा की उदासी का कारण पूछा। तब राजा ने बताया कि, उनकी पसंदीदा अंगूठी खो गयी है, और उन्हे पक्का संदेह है कि, उसे उनके बारह अंग रक्षकों में से किसी एक ने चुराया है।
राजा कृष्ण देव राय का सुरक्षा घेरा इतना चुस्त होता था की कोई चोर-उचक्का या सामान्य व्यक्ति उनके नज़दीक नहीं जा सकता था। तेनालीराम ने तुरंत महाराज से कहा कि, "मैं अंगूठी चोर को बहुत जल्द पकड़ लूँगा।" यह बात सुन कर राजा कृष्ण देव राय बहुत प्रसन्न हुए। उन्होने तुरंत अपने अंगरक्षकों को बुलवा लिया।
तेनालीराम बोले, “राजा की अंगूठी आप बारह अंगरक्षकों में से किसी एक ने ली है। लेकिन मैं इसका पता बड़ी आसानी से लगा लूँगा। जो सच्चा है उसे डरने की कोई ज़रुरत नहीं और जो चोर है वह कठोर दण्ड भोगने के लिए तैयार हो जाए।”
तेनालीराम ने बोलना शुरू रखा, “आप सब मेरे साथ आइये हम सबको काली माँ के मंदिर जाना है।” राजा बोले, ”ये क्या कर रहे हो तेनालीराम हमें चोर का पता लगाना है मंदिर के दर्शन नहीं कराने हैं!”
“महाराज!, आप धैर्य रखिये जल्द ही चोर का पता चल जाएगा।” तेनालीराम ने राजा को प्रतिक्षा करने को कहा।
मंदिर पहुँच कर तेनालीराम पुजारी के पास गए और उन्हें कुछ निर्देश दिए। इसके बाद उन्होंने अंगरक्षकों से कहा, ”आप सबको बारी-बारी से मंदिर में जा कर माँ काली की मूर्ति के पैर छूने हैं और तुरंत बाहर निकल आना है। ऐसा करने से माँ काली आज रात स्वप्न में मुझे उस चोर का नाम बता देंगी।"
अब सारे अंगरक्षक बारी-बारी से मंदिर में जा कर माता के पैर छूने लगे। जैसे ही कोई अंगरक्षक पैर छू कर बाहर निकलता तेनालीराम उसका हाथ सूंघते और एक साथ में खड़ा कर देते। कुछ ही देर में सभी अंगरक्षक एक कतार में खड़े हो गए। महाराज बोले, “चोर का पता तो कल सुबह लगेगा, तब तक इनका क्या किया जाए?” "नहीं महाराज, चोर का पता तो लग चुका है। सातवें स्थान पर खड़ा अंगरक्षक ही चोर है।
ऐसा सुनते ही वह अंगरक्षक भागने लगा, पर वहां उपस्थित सभी सिपाहियों ने उसे धर दबोचा, और कारागार में डाल दिया।
राजा और बाकी सभी लोग आश्चर्यचाकित थे कि, तेनालीराम ने बिना स्वप्न देखे कैसे पता कर लिया कि चोर वही है।
तेनालीराम सबकी जिज्ञासा शांत करते हुए बोले, ”मैंने पुजारी जी से कह कर काली माँ के पैरों पर तेज सुगन्धित द्रव्य छिड़कवा दिया था। जिस कारण जिसने भी माँ के पैर छुए उसके हाथ में वही सुगन्ध आ गयी। लेकिन जब मैंने सातवें अंगरक्षक के हाथ महके तो उनमे कोई सुगंध नहीं थी… उसने पकड़े जाने के डर से माँ काली की मूर्ति के पैर छूए ही नहीं। इसलिए यह साबित हो गया की उसी के मन में पाप था और वही चोर है।”
राजा कृष्ण देव राय एक बार फिर तेनालीराम की बुद्धिमत्ता के भक्त हो गए। और उन्हें स्वर्ण मुद्राओं से सम्मानित किया।

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