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हीरों का सच


हीरों का सच

सबसे क़ीमती चीज-The Most Valuable Thing | Tenali ...

एक बार राजा कृष्णदेवराय दरबार में बैठे मंत्रियों के साथ विचार विमर्श कर रहे थे कि, तभी एक व्यक्ति उनके सामने आकर कहने लगा, "महाराज मेरे साथ न्याय करें। मेरे मालिक ने मुझसे विश्वासघात किया है। इतना सुनते ही महाराज ने उससे पूछा, तुम कौन हो? और तुम्हारे साथ क्या हुआ है।”
“अन्नदाता मेरा नाम नामदेव है। कल मैं अपने मालिक के साथ किसी काम से एक गाँव में जा रहा था। गर्मी की वजह से चलते-चलते हम थक गए और पास में स्थित एक मंदिर की छाया में बैठ गए। तभी मेरी नज़र एक लाल रंग की थैली पर पड़ी जो की मंदिर के एक कोने में पड़ी हुई थी। मालिक की आज्ञा लेकर मैंने वो थैली उठा ली उसे खोलने पर पता चला कि, उसके अंदर बेर के आकार के दो हीरे चमक रहे थे। हीरे मंदिर में पाए गए थे इसलिए उन पर राज्य का अधिकार था, परन्तु मेरे मालिक ने मुझसे ये बात किसी को भी बताने से मना कर दिया और कहा कि, हम दोनों इसमें से एक-एक हीरा रख लेंगे। मैं अपने मालिक के दासत्व से परेशान था इसलिए मैं अपना काम करना नहीं चाहता था जिसके कारण मेरे मन में लालच आ गया। हवेली आते ही मालिक ने हीरे देने से मना कर दिया। यही कारण है कि, मुझे न्याय चाहिए।
महाराज ने तत्काल कोतवाल को भेजकर नामदेव के मालिक को महल में उपस्थित होने का आदेश दिया। नामदेव के मालिक को जल्दी ही राजा के सामने लाया गया। राजा ने उससे हीरों के बारे में पूछा तो वह बोला, “महाराज ये बात सच है कि, मंदिर में हीरे मिले थे लेकिन मैंने वो हीरे नामदेव को देकर उन्हें राजकोष में जमा करने को कहा था। जब वह वापस लौटा तो मैंने उससे राजकोष की रशीद मांगी तो वह आनाकानी करने लगा। मैंने जब इसे धमकाया तो ये आपके पास आकर मनगढ़त कहानी सुनाने लगा।” “अच्छा, तो ये बात है।” महाराज ने कुछ सोचते हुए कहा – “क्या तुम्हारे पास इस बात का कोई प्रमाण है कि, तुम सच बोल रहे हो?” “अन्नदाता अगर आपको मेरी बात पर विश्वास नहीं तो आप मेरे दूसरे तीनों नौकरों से पूछ सकते हो। वो उस समय वहीं थे।”
उसके बाद तीनों नौकरों को राजा के सामने लाया गया। तीनों ने नामदेव के विरूद्ध साक्ष दी। महाराज तीनों नौकरों और मालिक को वही बिठा कर अपने विश्राम कक्ष में चले गए और सेनापति तेनालीराम, महामंत्री को भी इस विषय में बात करने के लिया वहाँ बुलवा लिया। उनके पहुँचने पर महाराज ने महामंत्री से पूछा, “आपको क्या लगता है ? क्या नामदेव झूठ बोल रहा है ?”
“जी महाराज! नामदेव ही झूठा है। उसके मन में लालच आ गया होगा और उसने हीरे अपने पास ही रख लिए होंगे।” सेनापति ने साक्षीदारों को झूठा बताया। उसके हिसाब से नामदेव सच बोल रहा था। तेनालीराम चुपचाप खड़ा सबकी बातें सुन रहा था। तब महाराज ने उसकी ओर देखते हुए उसको पुछा। तेनालीराम बोला , “महाराज कौन झूठा है? और कौन सच्चा इस बात का अभी पता लग जायेगा परन्तु आप लोगों को कुछ समय के लिए पर्दे के पीछे छुपना होगा।” महाराज इस बात से सहमत हो गए क्योंकि, वो जल्दी से जल्दी इस मसले को सुलझना चाहते थे इसीलिए पर्दे के पीछे जाकर छुप गए। महामंत्री और सेनापति मुंह सिकोड़ते हुए पर्दे के पीछे चले गए।
अब विश्राम कक्ष में केवल तेनालीराम ही दिखाई दे रहा था। अब उसने सेवक से कहकर पहले साक्षीदार को बुलाया। साक्षीदार के आने पर तेनालीराम ने पूछा, “क्या तुम्हारे मालिक ने तुम्हारे सामने नामदेव को हीरे दिए थे।”
“जी हाँ।”
फिर तो तुम्हें हीरे के रंग और आकार के बारे में भी पता होगा। तेनालीराम ने एक कागज़ और कलम साक्षीदार के सामने करते हुए उससे कहा लो मुझे इस पर हीरे का चित्र बनाकर दिखाओ। इतना सुनते ही उसकी सिट्टी -पिट्टी गुल हो गयी और बोला, “मैंने हीरे नहीं देखे क्योंकि, वो लाल रंग की थैली में थे।” “अच्छा अब चुपचाप वहाँ जाकर खड़े हो जाओ।” अब दूसरे साक्षीदार को बुलाकर उससे भी यही प्रश्न पूछा गया।उसने हीरो के रंग के बारे में बताकर कागज़ पर दो गोल -गोल आकृतियाँ बनाकर अपनी बात की। फिर उसे भी पहले साक्षीदार के पास खड़ा कर दिया गया और तीसरे साक्षीदार को बुलाया गया।
उसने बताया कि, हीरे भोजपत्र की थैली में थे। इसलिए वह उन्हें देख नहीं पाया। इतना सुनते ही महाराज पर्दे के पीछे से सामने आ गए। महाराज को देखते ही तीनों घबरा गए और समझ गए कि, अब सच बोलने में ही उनकी भलाई है। तीनों महाराज के पैरों को पकड़कर क्षमा मांगने लगे और बोले हमें झूठ बोलने के लिए हमारे मालिक ने धमकाया था और नौकरी से निकालने की धमकी दी थी इसीलिए हमें झूठ बोलना पड़ा। महाराज ने तुरंत मालिक के घर की जांच पड़ताल के आदेश दे दिए। जांच पड़ताल लेने पर दोनों हीरे प्राप्त कर लिए गए। दंड के अनुसार मालिक को दस हज़ार स्वर्ण मुद्राएं नामदेव को देनी पड़ी और बीस हज़ार स्वर्ण मुद्राएं दंड की रकम भरनी पड़ी जबकि प्राप्त हुए दोनों हीरे राजकोष में जमा कर लिए गए। इस प्रकार तेनालीराम की मदद से महाराज ने नामदेव को न्याय दिलाया।

सुब्बा शास्त्री को सबक मिला

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