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प्रथम बेताल - पद्मावती की कथा - राजा विक्रमादित्य का उत्तर


बेताल के ऐसा कहने पर सब-कुछ जानते हुए भी राजा विक्रमादित्य ने शाप के भय से उससे यों कहा-"योगेश्वर, इसमें न जानने योग्य क्या है? इसमें इन तीनों का कोई पाप नहीं है। जो पाप है वह राजा कर्णोत्पल का है।"

बेताल बोला-"इसमें राजा का पाप क्या है? जो कुछ किया, वह तो उन तीनों ने किया। हंस यदि चावल खा जाएं तो इसमें कौओं का क्या अपराध है ?"

तब विक्रमादित्य बोला-"उन तीनों का कोई दोष नहीं था पद्मावती और राजकुमार कामाग्नि में जल रहे थे, वे अपने स्वार्थ साधन में लगे हुए थे। अतः वे भी निर्दोष थे। उनका विचार नहीं करना चाहिए लेकिन राजा कर्णोत्पाल अवश्य पाप का भागी था। राजा होकर भी वह नीतिशास्त्र नहीं जानता था, उसने अपने गुप्तचरों के द्वारा अपनी प्रजा से भी सच-झूठ का पता नहीं लगवाया। वह धूर्तों के चरित्र को नहीं जानता था। फिर भी बिना विचारे उसने जो कुछ किया, उसके लिए वह पाप का भागी हुआ।"

शव के अंदर प्रविष्ट उस बेताल से, जब राजा ने मौन छोड़कर ऐसी युक्तियुक्त बातें कहीं, तब उनकी दृढ़ता की परीक्षा लेने के लिए अपनी माया के प्रभाव से वह राजा विक्रमादित्य के कंधे से उतरकर इस तरह कहीं चला गया, कि राजा को पता भी नहीं चला। फिर भी राजा घबराया नहीं, राजा ने उसे फिर से ढूंढ़ निकालने का निश्चय किया और वापस उसी वृक्ष की ओर लौट पड़ा।

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