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PANCHTANTRA | पंचतंत्र |


INTRODUCTION - पंचतंत्र | परिचय |



भारतवर्ष जिस प्रकार अनेक विद्याओं का भंडार है, इसी प्रकार यहां की नीति प्रणाली भी अद्वितीय है। संसार में रहकर जो नीतिशास्त्र से वंचित हुआ है, मानो उसने बहुत कुछ नहीं जाना और एक प्रकार से मानो संसार में उसका आगमन निरर्थक ही है। हमारे इस देश के पूर्वज महानुभव दिव्य स्वभाव त्रिकालज्ञ, महाज्ञानी आचार्यों ने जन्म ग्रहण करके अपने अनंत ज्ञान की महिमा से इस जगत् को अनंत अनादि जानकर अपने अप्रतिहत योग बल से ब्रह्म और ब्रह्मा विषयक संपूर्ण तंत्र निरूपण करा दिए हैं। तब से लेकर इस पृथ्वी पर कितने ही राजाओं का आविर्भाव और तिरोभाव तथा वसुंधरा पर कितनी बार विप्लव और विपर्यय हुआ है तथा जन समूह का कितनी बार परिवर्तन हुआ है, किंतु उन मूर्तियों के योग बल से निर्मित वह सकल ग्रंथ ध्रुव की समान प्रकाशमान हो रहे हैं। उनकी इन ज्ञानपूर्ण रत्नों के कारण आज तक यह भारत भूमि जगत् में रत्न भंडार नाम से विख्यात है। उन्हीं अमूल्य रत्नों में से यह नीति मय ग्रंथ 'पंचतंत्र' एक अनुपम रत्न है। इसके निर्माण करने वाले महा पंडित विष्णु शर्मा है।

राजनीति एक बड़ा शास्त्र है, सबको परिश्रम से भी कठिन था से आ सकता है। इन महात्मा विष्णु शर्मा ने इसको इस चतुराई से निर्माण किया है कि, छोटी से छोटी बुद्धि के मनुष्य भी सरलता से इसके आशय को समझ सकते हैं। संपूर्ण नीति कथाओं में लाकर इस प्रकार से वर्णन है कि, जिससे पढ़ने वाली की बुद्धि चमत्कृत हो जाती है।

संस्कृत नीतिकथाओं में पंचतंत्र का स्थान

संस्कृत नीतिकथाओं में पंचतंत्र का पहला स्थान माना जाता है। यद्यपि यह पुस्तक अपने मूल रूप में नहीं रह गयी है, फिर भी उपलब्ध अनुवादों के आधार पर इसकी रचना तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के आस- पास निर्धारित की गई है। उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर कहा जा सकता है कि जब इस ग्रंथ की रचना पूरी हुई, तब उनकी उम्र लगभग ८० वर्ष थी। पंचतंत्र को पाँच तंत्रों (भागों) में बाँटा गया है:

१. मित्रभेद (मित्रों में मनमुटाव एवं अलगाव)
२. मित्रलाभ या मित्रसंप्राप्ति (मित्र प्राप्ति एवं उसके लाभ)
३. काकोलुकीयम् (कौवे एवं उल्लुओं की कथा)
४. लब्धप्रणाश (हाथ लगी चीज (लब्ध) का हाथ से निकल जाना (हानि))
५. अपरीक्षित कारक (जिसको परखा नहीं गया हो उसे करने से पहले सावधान रहें ; हड़बड़ी में कदम न उठायें)

पंचतन्त्र की कहानियां बहुत जीवंत हैं। इनमे लोकव्यवहार को बहुत सरल तरीके से समझाया गया है। बहुत से लोग इस पुस्तक को नेतृत्व क्षमता विकसित करने का एक सशक्त माध्यम मानते हैं। इस पुस्तक की महत्ता इसी से प्रतिपादित होती है कि इसका अनुवाद विश्व की लगभग हर भाषा में हो चुका है।

विश्व-साहित्य में पंचतन्त्र का स्थान

विश्व-साहित्य में भी पंचतन्त्र का महत्वपूर्ण स्थान है। इसका कई विदेशी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। इन अनुवादों में पहलवी भाषा का ‘करटकदमनक’ नाम का अनुवाद ही सबसे प्राचीन अनुवाद माना जाता है। इसकी लोकप्रियता का यह परिणाम था कि बहुत जल्द ही पंचतंत्र का ‘लेरियाई’ भाषा में अनुवाद करके प्रकाशित किया गया, यह संस्करण 570 ई. में प्रकाशित हुआ था। फारसी से अरबी भाषा में इसका अनुवाद हुआ। अरबी से सन 1080 के लगभग इसका यूनानी भाषा में अनुवाद हुआ। फिर यूनानी से इसका अनुवाद लैटिन भाषा में पसिनस नामक व्यक्ति ने किया। अरब अनुवाद का एक उल्था स्पेन की भाषा में सन 1251 के लगभग प्रकाशित हुआ। जर्मन भाषा में पहला अनुवाद 15वीं शताब्दी में हुआ और उससे ग्रंथ का अनुवाद यूरोप की सब भाषाओं में हो गया। विंटरनित्ज़ के अनुसार जर्मन साहित्य पर पंचतन्त्र का अधिक प्रभाव देखा जाता है। इसी प्रकार ग्रीक की ईसप् की कहानियों का तथा अरब की 'अरेबिअन नाइट्स' आदि कथाओं का आधार पंचतन्त्र ही है। ऐसा माना जाता है कि पंचतन्त्र का लगभग 50 विविध भाषाओं में अब तक अनुवाद हो चुका है और इसके लगभग 200 संस्करण भी हो चुके है। यही इसकी लोकप्रियता का परिचायक है।

संस्कृत के इस विश्वप्रसिद्ध गौरव-ग्रंथ को हिन्दी के पाठकों तक पहुंचाने के लिए इसे सरल और सुबोध भाषा में प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि इसके पठन-पाठन से पाठक लाभान्वित होंगे।

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